Wednesday, September 9, 2015

हमारा पिछड़ापन

हिंदी में लिखने की  शुरुआत है ये। मुझे हिंदी में लिखना बहुत  पसंद है।

अंग्रेजी भाषा का आना आवश्यक तो है पर क्या हिंदी भाषा का ज्ञान होना पिछड़ापन है।

हमारे देश में दिखावे की बहुत पुरानी परंपरा रही है।  इसी वजह से बस हम एक दूसरे को बस अपने धन का , अपने ज्ञान का और दूसरी  चीज़ो का दिखावा करते रहते है।

हमारी ये मानसिकता कब बदलेगी , कब हम वास्तविकता में खुश होना सीखेंगे , कब हम यथार्थ को समझना शुरू कर पाएंगे।

सच  तो ये है की जीवन की इस आपा धापी में हम सच को समझ नहीं पाते है।  हम जो पुस्तकों में पढ़ते है उसी को सच मानते है।  जो हम दूसरों  से सीखते है उसी को सच मानते है।  हम कभी खुद से सवाल नहीं करते है की क्या ये सही है या गलत।  कई बार तो एक  लम्बा वक़्त गुजरने के बाद पता चलता है की हम शायद तब गलत थे।
समय बीतता जाता है और धीरे धीरे जीवन का सच समझ में आने लगता है।  प्यार , विश्वास , प्राथना  , ख़ुशी जैसी तमाम चीज़ें  धीरे धीरे समझ  आने  लगती है।  अत्यंत चपल और चालाक  व्यक्ति  मूर्ख  नज़र  आने लगता है और शांत सा  दिखने वाला व्यक्ति समझदार।

यही  जीवन है।  शांत और सरल सा।  पैसा  कमाने की होड़ में हमने अपने आप को भुला दिया है।  सत्य बस यही रह गया है की यह पैसा ही सबसे ऊपर है। इसमें गलती किसकी है , मनुष्य  को बनाने वाले की या  फिर उसकी जिसे मनुष्य  ने बनाया है।

यह पैसे  का लेन देन  भी तो  मनुष्य  ने ही बनाया  है।  

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